पीएम मोदी ने भाषण के जरिए हमारी सुरक्षा बलों का अपमान किया: शिवसेना
78वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर पीएम मोदी ने लाल किले की प्राचीर से देशवासियों को संबोधित किया। पीएम मोदी (PM Modi) ने लगभग 97 मिनट तक भाषण दिया है। आजादी के बाद किसी प्रधानमंत्री का ये सबसे लंबा भाषण है।
अपने भाषण में पीएम मोदी ने यूनिफॉर्म सिविल कोड, विकसित भारत 2047, मौजूदा सरकार के लक्ष्य समेत कई मुद्दों का जिक्र किया। हालांकि,पीएम मोदी का भाषण शिवसेना (यूबीटी) को पसंद नहीं आई। शिवसेना (यूबीटी) ने अपने मुखपत्र सामना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस के भाषण को बोरिंग (उबाऊ) बताया है।
सामना में लिखा गया, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनसे जुड़े लोग देश की आजादी को लेकर कभी गंभीर नहीं रहे। यही कारण है कि स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से दिया गया उनका भाषण उबाऊ था। उन्होंने ऐसा भाषण दिया जो किसी चुनाव प्रचार रैली में दिया जाना चाहिए था।”
सामना में कहा गया, “पीएम ने कहा कि पहले दुश्मन हमारे देश में घुसकर हमें मार रहे थे। यह हमारी सेना और सुरक्षा बलों का अपमान है। पीएम मोदी को कारगिल युद्ध और उसके बाद हुए युद्ध का जिक्र करना चाहिए था।”
पीएम मोदी ने मणिपुर घटना नहीं किया जिक्र: शिवसेना (यूबीटी)
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सराहना करते हुए संपादकीय में कहा गया, ”इंदिरा गांधी ने खालिस्तानी आतंकवादियों की परवाह किए बिना अमृतसर में टैंकों में मार्च किया और अंततः देश के लिए खुद को बलिदान कर दिया।
मणिपुर संकट के बारे में एक शब्द भी उल्लेख नहीं करने के लिए पीएम मोदी की आलोचना करते हुए संपादकीय में कहा गया है, “मणिपुर में तीन साल से हिंसा भड़क रही है और मोदी ने मणिपुर के ‘एम’ का उच्चारण भी नहीं किया है।”
मोदी सरकार के कामकाज पर शिवसेना (यूबीटी) ने उठाए सवाल
संपादकीय में नरेंद्र मोदी के तीसरी बार सत्ता में आने को ‘संयोग या दुर्घटना’ बताया गया है। इसमें आगे कहा गया, “मोदी के आने से पहले, देश ने उद्योग, विज्ञान, व्यापार और कृषि के क्षेत्र में बहुत प्रगति की। नेहरू ने मंदिर-मस्जिद विवाद में पड़े बिना आईआईटी जैसे संस्थान बनाए।”
शिवसेना (यूबीटी) के मुखपत्र में आगे लिखा गया,”पीएम मोदी और उनके भक्तों के हाथों में एक उन्नत और विकसित देश की बागडोर है, लेकिन उन्होंने पिछले दस वर्षों में देश के संविधान के साथ छेड़छाड़ किया। पिछले 10 सालों में अदालतों और केंद्रीय एजेंसियों पर दबाव बनाने और लोकतंत्र और विपक्षी दलों का गला घोंटने का काम किया गया है।