महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित स्व. कृष्णानंद उप्रेती के आजादी आंदोलन के संघर्ष व त्याग को भारत के गृह मंत्रालय ने किया नमन
नैनीताल। उत्तराखंड के सीमांत पिथौरागढ़ जिले के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित स्व. कृष्णानंद उप्रेती के आजादी आंदोलन के संघर्ष व त्याग को भारत के गृह मंत्रालय ने नमन किया है। मंत्रालय ने महान स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में उनके संघर्षों की जीवन गाथा को अपनी वेबसाइट पर जारी किया है। शुक्रवार को इस सीरीज की पहली जीवन गाथा स्व. कृष्णानंद की जारी हुई है।
कृष्णानंद उप्रेती का जन्म 1895 में पिथौरागढ़ जिले के हुड़ेती गांव में हुआ था। 1920 में कांग्रेस के सदस्य बने और 1921 में कुमाऊं क्षेत्र के पहले कांग्रेस कार्यालय की नींव रखी। उन्होंने कुली बेगार आंदोलन में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके प्रयासों से 1928 में पिथौरागढ़ जिले में पहला हाईस्कूल स्थापित हुआ। 1920 के असहयोग आंदोलन के दौरान कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों में कुली बेगार, कुली उत्तर और कुली बर्दयाश की प्रथा का सख्त पालन हो रहा था।
नौ माह रहे जेल, बागी भी कहलाए
पहली मार्च 1921 को बद्री दत्त पांडे के पिथौरागढ़ आगमन के समय कुमाऊं क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दी गई। प्रविधान का उल्लंघन करते हुए कृष्णानंद उप्रेती ने बड़ी जनसभाएं आयोजित कीं तथा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध नारे लगाए। तब उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा छह माह के लिए अल्मोड़ा जेल में रखा गया। उन्हें “बागी” की उपाधि भी दी गई।
1923 में उप्रेती ने पिथौरागढ़ में वन आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसके कारण उन्हें तीन महीने के लिए अल्मोड़ा जेल भेजा गया। 1924 में असकोट के रजवाड़ों ने आम जनता पर भारी अत्याचार किए। ऐसे अत्याचारों को रोकने के लिए कृष्णानंद उप्रेती ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर आंदोलन का नेतृत्व किया। उप्रेती ने नाइक सामाजिक सुधार आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
जनप्रतिनिधि, पत्रकार व उद्यमी की भी भूमिका
पंडित कृष्णानंद अल्मोड़ा जिला परिषद के सदस्य भी चुने गए। उन्होंने पिथौरागढ़ के शक्ति समाचार पत्र के संपादक के रूप में भी काम किया। जिसमें आम जनता की शिकायतों को उजागर किया गया। उन्होंने हुरेटी गांव में एक लघु-स्तरीय हथकरघा उद्योग क्षेत्र की स्थापना की। जिससे भोटिया समुदाय के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध हुए। वे ऊनी कपड़े, कालीन, पंखी आदि बनाते थे और अपनी आजीविका चलाते थे।
1936 में ब्रिटिश कानूनों के उल्लंघन के लिए फिर से गिरफ्तार हुए। तीम माह 11 दिन बाद उन्हें खराब स्वास्थ्य के कारण जेल से रिहा कर दिया गया। फिर भी अंग्रेजों का अत्याचार जारी रहा। उनके घर को ब्रिटिश अधिकारियों ने सील कर दिया। यही नहीं एक साजिश के तहत जहर देकर उन्हें मार दिया गया था। 42 वर्ष की अल्पायु में उनकी मृत्यु हो गई।