उत्तराखण्डजीवन के रंग विशेष

कूड़े के ढेर में बनाया घर, एक बुजुर्ग इंसान है बेघर, वह भटकता है दर ब दर

वीएस चौहान की रिपोर्ट

इस गीत में यह सही कहा है कि” यह जीवन है इस जीवन का यही है रंग रूप”  “थोड़े गम है थोड़ी खुशियां”  “यह जीवन है इस जीवन का यही है रंग रूप”  “यही है यही है यही है छांव  धूप” यह न्यूज़ ऐसे शख्स की है कि कभी उसके जीवन में खुशियां ही खुशियां थी। उसका परिवार अपने साथ था। उसकी बीवी उसके बच्चे घर खेत खलियान सभी कुछ उसके पास था।उसे यह शख्स जवान था। अपने जीवन  यापन के लिए  मेहनत कर सकता। था।मजदूरी कर सकता था। जीवन यापन के लिए कमा  सकता था। इसको न्यूज़ कहें या उस शख्स के जीवन की की दर्द भरी कहानी यह कहानी उन युवक युवतियों के लिए एक शिक्षा है जो यह भूल जाते  है कि वे युवा आज जवान व्यक्ति हैं। आने वाले वर्षों में वह  युवा  बुजुर्ग व्यक्ति हो जाएगा,और आज के आधुनिक बदलते युग में लोगों की भावनाएं बदल गई है।हर एक के अंदर भावनाओं की कमी हो गई है।आज के दौर में बहुत से युवा युवती  बुजुर्गों का सम्मान करना भूल जाते हैं। बुजुर्गों के प्रति उनकी संवेदनाएं खत्म हो जाती हैं।

मेरी इस न्यूज़ का दयनीय किरदार आजकल ऋषिकेश में बस अड्डे के पास सड़क के किनारे पर कूड़े के ढेर के पास खोहनुमा घर में रह रहा है। इसको कूड़े का ढेर कह सकते हैं लेकिन यह उस बुजुर्ग व्यक्ति के लिए यह एक आशियाना है।अब  उस बुजुर्ग के लिए यह एक सर छुपाने की जगह है।  जो गर्मी सर्दी में उसको छाया देती है । इसलिए कूड़ा घर भी  उसके लिए  जीवन बचाने वाला घर है।

कमाल की बात यह है कि यह बुजुर्ग व्यक्ति कोई पागल व्यक्ति नहीं है । बिल्कुल स्वस्थ मस्तिष्क का यह व्यक्ति है।लेकिन उस व्यक्ति की परिस्थितियों ने उसको यहां पहुंचा दिया है। वहां  पर चारों तरफ कूड़ा है, और  फटे पुराने कपड़े हैं। वहां पर फेंकी हुई पुरानी पन्निया है। मगर वह बुजुर्ग व्यक्ति हड्डियों का ढांचा है। जो अपने उस  कूड़े वाले घर में  उकड़ू  बैठकर सरक सरक कर अपने उस घर के अंदर जाता है।

और इसी प्रकार वह बुजुर्ग व्यक्ति ओक्कड़ु बैठकर सरक सरक कर अंदर से बाहर आता है। वह मांग कर  लाकर खाता है। और कभी-कभी उसी  घर में खाना भी बनाता  है।  वह छोटा सा घर पूरा धुए से भर जाता है। बहुत से लोग  बड़े-बड़े घर आराम के लिए अच्छे जीवन जीने के लिए बनाते हैं । लेकिन  उस बुजुर्ग व्यक्ति का यह घर  उसके लिए दरिद्र कमजोर बेचारा जीवन को काटने के लिए है। ऋषिकेश शहर धार्मिक तपस्थली माना जाता है।शहरों में  धर्मशालाएं  होती हैंऔर  वृद्धाश्रम होते हैं धार्मिक स्थलों पर सतों के आश्रम होते हैं  अधिकांश शहरों में रेन बसेरे होते हैं। लेकिन यह व्यक्ति ऋषिकेश जैसे  धार्मिक शहर में बुरा जीवन काट रहा है।

जहां ऋषिकेश और हरिद्वार जैसे शहरों में  दूर-दूर से अधिकांश लोग बड़ी उम्मीद के साथ आते हैं यदि किसी के पास घर नहीं है तो शायद उसका जीवन इस शहर में कट जाएगा ।लोगों के मुताबिक  ऋषिकेश शहर में रेन बसेरा भी नहीं है। बहुत  सी धर्मशालाएं होटलों में तब्दील हो चुकी हैं। बहुत से लोग इस रोड से  निकलते होंगे  जिनमें  सरकारी वॉलिंटियर और कई संस्थाओं के लोग भी निकलते होंगे शायद उन लोगों की निगाह इस बुजुर्ग व्यक्ति पर नहीं पड़ी।

यह मुद्दा ऐसे बुजुर्ग  60, 65,70 , 75  वर्ष की उम्र के लोगों के लिए है जो शरीर से कमजोर हो जाते हैं।  मस्तिक से भी कमजोर हो जाते हैं।  और कहीं नौकरी करने लायक भी नहीं होते हैं। सरकार को ऐसे बुजुर्गों के  अंतिम पड़ाव के जीवन के बारे में सोचना चाहिए क्योंकि यह बुरा समय  किसी के पास भी आ सकता है  चाहे वह गरीब हो चाहे अमीर हो चाहे और राजा हो चाहे वह फकीर हो। फिर भी इस बुजुर्ग व्यक्ति की कहानी प्रकार है कि  आज यह बुजुर्ग दिखने वाला व्यक्ति अपनी जवानी के समय खुशहाल जीवन काट रहा था। इस व्यक्ति का नाम कलुआ है ।यह बुजुर्ग व्यक्ति लखनऊ शहर के पास अलीगंज से आगे  सुल्तानपुर के निकट रामनगर कठुआ गांव का रहने वाला है। अपनी पत्नी की मौत के बाद बहरहाल यह व्यक्ति अपने बेटे बहू परिवार के लोगों द्वारा बाहर निकाल दिया गया या परेशान होकर खुद ही घर छोड़कर इस जीवन को काटने के लिए यहां आ गया। कभी-कभी यह बुजुर्ग व्यक्ति मांग कर लाता है रात के वक्त कुछ नशेड़ी लोग इसके पैसे छीन कर भाग जाते हैं। ऐसे ही लोग रात के अंधेरे में ना जाने किस दिन गायब हो जाते हैं।और कीड़े मकोड़े ,कॉकरोच की तरह मर कर इस दुनिया से न जाने कब चले जाते हैं ।और गुमनामी की जिंदगी जीते हुए गुमनामी के अंधेरे में न जाने कब खो जाते हैं।और फिर उनके परिवार के लोग उन्हें ढूंढते हुए आते हैं।लेकिन वह फिर कभी नहीं मिलते। बस उनके परिवार के लोग गंगा जी के किनारे खड़े होकर अपने मरे हुए पितरों से माफी मांगते हैं। और वही दान पुण्य करते हैं। मगर ऐसे दान पुण्य का और अपने पितरों से माफी मांगने का क्या फायदा है। जो लोग अपने बुजुर्गों के लिए जीते जी कुछ भी नहीं कर पाते हैं।

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